गुनाह किये होते, तो मांफ भी हो जाते साहिब,
ख़ता तो मुझसे ये हुई कि उनसे इश्क़ हो गया।
मोहब्बत की तलाश में निकले हो तुम अरे ओ पागल,
मोहब्बत खुद तलाश करती है जिसे बर्बाद करना हो।
इश्क ..था इसलिए सिर्फ तुझ से किया,
फ़रेब होता तो सबसे किया होता।
किसी ने मुझसे पूछा कैसी है अब जिंदगी,
मैने मुस्कुरा कर जवाब दिया वो खुश है।
रहने दे कुछ बातें यूँ ही अनकही-सी,
कुछ जवाब तेरी-मेरी खामोशी में अटके ही अच्छे हैं।
तभी तक पूँछे जाओगे जब तक काम आओगे,
चिराग़ों के जलते ही बुझा दी जाती है तीलियाँ।
अपने हालात का खुद एहसास नहीं मुझको,
मैंने औरों से सुना है के परेशान हूँ मैं।
उनसे कह दो मेरी सजा कुछ कम कर दे,
हम पेशे से मुजरिम नहीं बस गलती से इश्क़ हुआ था।
कसूर उनका नहीं हमारा ही है दोस्तों, हमारी चाहत ही,
इतनी थी कि उनको गुरूर आ गया।
तैरना तो आता था हमे मोहब्बत के समंदर में लेकिन, जब उसने हाथ ही नही पकड़ा तो डूब जाना अच्छा लगा।
तुम बदलो तो मजबूरियाँ हैं बहुत, हम बदलें तो बेवफा हो गए।
वक़्त अच्छा हो तो आप की ग़लती भी मज़ाक लगती है,
और वक़्त खराब हो तो मज़ाक भी ग़लती बन जाती हैं।
इक उम्र तक मैं जिसकी जरुरत बना रहा,
फिर यूँ हुआ कि उस की जरुरत बदल गई।
क्या अजीब सी ज़िद है, हम दोनों की,
तेरी मर्ज़ी हमसे जुदा होने की,और मेरी तेरे पीछे तबाह होने की।
यूँ चेहरे पर उदासी ना ओढिये साहब,
वक़्त ज़रूर तकलीफ का है लेकिन कटेगा मुस्कुराने से ही।
तूने चुप रहकर और भी ढाया है सितम,
तुझसे तो अच्छे है मेरे इस हाल पे हंसने वाले।
मुझे मालूम था कि वो रास्ते कभी मेरी मंजिल तक नहीं जाते थे,फिर भी मैं चलता रहा क्यूँ कि उस राह में कुछ अपनों के घर भी आते थे।
हम तो जल गये उसकी मोहब्बत में मोमकी तरह,
अगर फिर भी वो हमें बेवफा कहे तो उसकी वफ़ा को सलाम।
मेरी जान को हमेशा खुश रखना ए खुदा,
उसके जख्मों की कीमत मेरी जिंदगी से काट लेना।
लिखी कुछ शायरी ऐसी तेरे नाम से कि,
जिसने तुम्हे देखा भी नही उसने भी तेरी तारीफ कर दी।
हर तमन्ना जब दिल से रुख्सत हो गई,
यक़ीन मानिये फ़ुर्सत ही फ़ुर्सत हो गई।
ऐ खुदा इतनी सी उमर चाहिये मुझे,
ना मरू उससे पहले, ना जिऊँ उसके बाद।
मुझसे नहीं कटती अब ये उदास रातें,
कल सूरज से कहूँगा मुझे साथ लेकर डूबे।
बात तो सिर्फ़ ज़ज़्बातों की है वरना,
मोहब्बत तो सात फेरों के बाद भी नहीं होती।
मुझे इंतज़ार करना बेहद पसंद है,
क्यू की ये वक़्त उम्मीद से भरा होता है।
फिसलती रेत से सीख लो सबक जिंदगी के,
जोर अपनी जगह होता है नजाकत अपनी जगह।
याद है मुझे वो चार पल की महोब्बत,
किसी ने हम पर भी एहसान किया था।
नहीं मिला कोई तुम जैसा आज तक,
पर ये सितम अलग है की मिले तुम भी नही।
लफ्ज़ बीमार से पड़ गये है आज कल,
एक खुराक तेरे दीदार की चाहिए।
रोज़ पिलाता हूँ एक ज़हर का प्याला उसे,
एक दर्द जो दिल में है मरता ही नहीं है ।
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