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बहुत भीड़ हो गई थी उनके दिल में,

तो हम चैन की साँस लेने बाहर चले आयें..



Source Image - barish shayari

प्रेम करना कोई मुश्किल नहीं,

प्रेम के बदले में कोई औऱ चाहत ना रखना मुश्किल है!!


प्रेम अबूझ, प्यार पहेली 

इश्क़ निर्धन, मोहब्बत अकेली..!


गो कठिन है तय करना उम्र का सफ़र तन्हा

लौट कर न देखूँगा चल पड़ा अगर तन्हा


तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं 

किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं 


कौन शरमा रहा है आज यूँ हमें फ़ुर्सत में याद कर के..

हिचकियाँ आना' तो चाह रही हैं, पर हिच-किचा रही है...


यही बहुत है कि तुमने पलट के देख लिया,

ये लुत्फ़ भी मेरी उम्मीद से कुछ ज्यादा है।


मुझको गहराई में मिट्टी की उतर जाना है

ज़िंदगी बाँध ले सामाने-सफ़र जाना है


घर की दहलीज़ पे रौशन हैं वो बुझती आँखें

मुझको मत रोक मुझे लौट के घर जाना है


मैं वो मेले में भटकता हुआ इक बच्चा हूँ

जिसके माँ-बाप को रोते हुए मर जाना है


ज़िंदगी ताश के पत्तों की तरह है मेरी

और पत्तों को बहरहाल बिखर जाना है


Gulzar shayari


एक बेनाम से रिश्ते की तमन्ना लेकर

इस कबूतर को किसी छत पे उतर जाना है


वक्त के नाखून,बहुत गहरा नोचते है दिल को 

तब जाके कुछ जख्म, तजुर्बे बनके नजर आते है


कमबक्त  'दर्द' भी बडा जिद्दी होता है आँखों को 'संभालो' तो,दिल को भारी कर जाता है


आसान नही है उस शख्स को समझना..

जो जानता सब कुछ है पर बोलता कुछ नही


तलाशे~यार~में उड़ता हुआ गुब्बार हूँ मैं

पड़ी है लाश मेरी और कब्र  से फरार हूँ मै


कभी नजरे मिलाने में जमाने बीत जाते हैं,

कभी नजरे चुराने में जमाने बीत जाते हैं।


किसी ने आँखे भी ना खोली तो सोने की नगरी में,

किसी को घर बनाने में जमाने बीत जाते हैं।


कभी काली सियाह राते हमें एक पल की लगती है,

कभी एक पल बिताने में ज़माने बीत जाते हैं।


कभी खोला दरवाजा सामने खड़ी थी मंजिल,

कभी मंजिल को पाने में जमाने बीत जाते हैं।


एक पल में टूट जाते है, उम्र भर के वो रिश्ते,

जिन्हें बनाने में जमाने बीत जाते हैं।


थोड़ी मस्ती थोड़ा सा ईमान बचा पाया हूँ, 

ये क्या कम है कि मैं अपनी पहचान बचा पाया हूँ,


मैंने सिर्फ़ उसूलों के बारे में सोचा भर था, 

कितनी मुश्किल से मैं अपनी जान बचा पाया हूँ


कुछ उम्मीदें, कुछ सपने, कुछ महकी-महकी यादें, 

जीने का मैं इतना ही सामान बचा पाया हूँ,


मुझमें शायद थोड़ा-सा आकाश कहीं पर होगा, 

जो मैं घर के खिड़की रोशनदान बचा पाया हूँ,


इसकी कीमत क्या समझेंगे ये सब दुनिया वाले, 

अपने भीतर मैं जो इक इंसान बचा पाया हूँ 


जो ग़ुज़र जाती है वही काग़ज़ पर उतर आती है 

नज़्म बनती है मेरी ज़िंदगी ग़ज़लों में सँवर जाती है


दर्द गीतों में बयां होते हैं अश्क लफ़्ज़ों में उतर आते हैं 

रात की रोशनाई में नज़्म दिल की नज़र आती है


बदलते वक्त में ज़माने का ये दस्तूर हुआ 

मेरे हमदम मैं तुझे चाह कर मशहूर हुआ


tareef shayari


छीन मेरे अल्फा़ज़ वो क्या चाहता है 

मैं तुझे काफ़िर कहूं मज़बूर हुआ 


उसूलों पे जहाँ आँच आये टकराना ज़रूरी है

जो ज़िन्दा हों तो फिर ज़िन्दा नज़र आना ज़रूरी है, 


नई उम्रों की ख़ुदमुख़्तारियों को कौन समझाये

कहाँ से बच के चलना है कहाँ जाना ज़रूरी है, 


थके हारे परिन्दे जब बसेरे के लिये लौटे

सलीक़ामन्द शाख़ों का लचक जाना ज़रूरी है, 


बहुत बेबाक आँखों में त’अल्लुक़ टिक नहीं पाता

मुहब्बत में कशिश रखने को शर्माना ज़रूरी है, 


सलीक़ा ही नहीं शायद उसे महसूस करने का

जो कहता है ख़ुदा है तो नज़र आना ज़रूरी है, 


मेरे होंठों पे अपनी प्यास रख दो और फिर सोचो

कि इस के बाद भी दुनिया में कुछ पाना ज़रूरी है !


हसरतों के सैलाब में आज कश्ती खेने दो

तमन्नाओं के दरिया में आज तैर लेने दो,


ना होती हो तो ना हो क़िस्मत मेहरबान 

पर हमें जी भर के कोशिश आज कर लेने दो,


कहीं यह अरमान ना रह जाये कि यह करते 

कहीं यह अरमान ना रह जाये कि वह करते,


जब हार के मरना तो तय है ही , 

तो फिर मरने से पहले आज जी लेने दो.