दिल शायरी 

ज़िंदगी मज़ाक बन चुकी है 

और मुझे बिल्कुल हँसी नही आ रही है।




इरफ़ान क्या करेगा प्यार मोहब्बत की बातें 

इऱफान को आते नहीं हैं आशिक़ी के तराने

दर्द ग़म तक़लीफ़ झेल कर यहाँ तक आया हूँ

इरफ़ान को आते नहीं हैं आशिक़ी के फ़साने


मोहब्बत की कोई निशानी नहीं

यारों अपनी कोई कहानी नहीं


मिलता जो हैं दिल तोड़ देता हैं

यहाँ अपनी कोई दीवानी नहीं


तन्हा हैं और तन्हा ही रहेगें हम

यहाँ अपनी जीवन साथी नहीं


नाकामियों की क़िताब हू मैं

ख़ुद से खुद का हिसाब हू मैं


कोई हमसे क्या सवाल करेगा

अपने आप में जवाब हू मैं



दूर से ही सारे मंज़र देखता हू

जैसे के कोई अज़ाब हू मैं 


कोई क़रीब से आकर गुजर गया

जैसे के बहोत अज़ीब हू मैं

 

नहीं मिलता कोई हमसफ़र मुझे

जैसे के दिल से ग़रीब हू मैं 



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हम तो इक गिरती हुई दीवार हैं 

आप के रहम-ओ-करम पर बार हैं 


हर क़दम पर हैं सलीबें दार हैं 

ज़िंदगी के रास्ते पुर-ख़ार हैं 


आज तक पीते रहे हैं अश्क-ए-ग़म 

ज़हर भी पीने को अब तय्यार हैं 


पाएँगे साया भी इक दिन धूप में 

वक़्त के गेसू अगर ख़मदार हैं 


यार तो ख़ामोश हैं मुद्दत हुई 

अब करम-फ़रमा फ़क़त अग़्यार हैं 


कौन पूछेगा हमें अब वक़्त के 

हाथ में टूटी हुई तलवार हैं


हमनें मुहब्बत का अख़बार होने नहीं दिया 

तेरे बाद दिल को किसी का होने नहीं दिया 


सख़्त लहज़े से दूर हमनें सबकों कर दिया 

किसी को हमनें अपने क़रीब आने नहीं दिया


तेरे दिए जख्मों की ख़बर किसी को न दी 

अश्कों को हमनें आँखो से बहने न दिया 


सख़्त लफ़्ज़ों से हर एक को जवाब दिया 

अपने लहज़े से हर एक को दिल आज़ार किया 




रख दिया उंगली को अपने होठों पर हमनें

तेरी शिकायत तेरा शिक़वा किसी से नहीं किया 


चाहते हैं हम भी वफ़ा के बदले वफ़ा 

लेक़िन जज्बातों को हमनें सारे आम न किया 


आपके सिवा कोई नहीं है इस दिल मे 

अब मैं भी आपकी और ये जिंदगी भी आपकी।


तुम मुझे फ़ुर्सत के लम्हों में शुमार मत करना

चराग़ जलाए रखना तुम सिंगार कर के रखना


मैं भी इंसान ही हू मिजाज बदलता रहता हैं 

तुम मेरी बातों को दिल से लगा कर मत रखना


मैं आफ़ताब की रौशनी की तरहा ही साथ हू

तुम मुझसे नज़रे यू ना फेरा करना 




यहाँ मेरे मुख़ालिफ़ बहूत से लोग हैं ज़ाना 

लेक़िन तुम मेरी वफ़ा पर शक मत करना 


तुम्हें बताऊँ ये दुनियां बहोत मतलबी हैं 

लेक़िन तुम सिर्फ़ मुझसे प्यार करते रहना 


मिलेंगें तुम्हें राह में बहूत से हमसफ़र ज़ाना

मैं आ रहा हू तुम मेरा इंतेज़ार करना 


हम अपनों में लगतें हैं बेगानों से

क्या फ़ायदा भला ऐसे अपनो से 


यू तो मुझे सब ने ही गैर ही समझा 

क्या ख़ूब बात निकली अफ्साने से


अब मुझे अपनी जगहा दिखने लगी

क़भी जब गुज़र हुआ महफ़िलो से 


एक पल भी न रुक पाओगें संग मेरे 

सारे जख़्म लौट आए हैं दीवानों से


तुम को मरना हैं तुम मर ही जाओ 

सब कहते हैं यहाँ इस आवारे से




अपनी मर्ज़ी से आना फ़िर चले जाना

मेरा दिल क्या कोई धर्मशाला हैं 


हुस्न क्या चीज़ है वक्त के सामने,

तू क़यामत सही ता-क़यामत नहीं।


राह चलते हुए अक्सर ये गुमाँ होता हैं 

के "उमर आयात"मुझे छुप के देख रहे हो जैसे


जब वालिद ने पढ़ी ग़ज़ले मेरी 

कहाँ बेटा उम्दा लिख रहे हो तुम

अब भूल जाओ उसे 


जख्म देने वाले साथ रहने को कहते हैं

जाने अब कौनसी तलवार चलानी है मुझपर


मेरे बदमान होने का सबब जब किसी ने पूछा तो, 

बस इतना बताया के शायरी सिखाई थी।


यहाँ सब ईमानदार है,

बेईमानी का मौका मिलने तक।


मेरे ऐब मुझे उंगलिओं पे गिनाओ यारो,

बस मेरी गैर- मौजूदगी मैं मुझे बुरा मत कहना।


उस कब्र में भी हमको सुकूँ की नींद नसीब नहीं हुई,

फ़रिश्ते आके कहते हैं कोई नया शेर हो जाए।


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