मोहब्बत शायरी: दोस्तो हमेशा कि तरह आज फिर से हाजिर है नए पोस्ट के साथ जिसका टाइटल है शायरी । आपको ये पोस्ट जरूर अच्छा लगेगा और आप इसे अपने दोस्तो के साथ जरूर शेयर करेंगे हमे पूरा भरोसा है। तो चलिए पोस्ट कि मोहब्बत शायरी को पढ़ते है।
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।
संसार की हर शै का इतना ही फ़साना है।
इक धुंध से आना है, इक धुंध में जाना है ।।
ये राह कहाँ से है, ये राह कहाँ तक है।
ये राज़ कोई राही, समझा है न जाना है ।।
इक पल की पलक पर है ठहरी हुयी ये दुनिया।
इक पल के झपकने तक हर खेल सुहाना है ।।
क्या जाने कोई किस पर किस मोड़ पे क्या बीते।
इस राह में ऐ राही हर मोड़ बहाना है।
हम लोग खिलौने हैं, इक ऐसे खिलाडी के।
जिसको अभी सदियों तक ये खेल रचाना है ।।
करने दो अभी इनको और गलतियां
थोड़े न समझ,थोड़े नादान ही तो हैं
क्यों पछियों की तरह हम नही उड़ते
सिर्फ इतनी बात से परेशान ही तो हैं
भरने दो नन्ही हथेली में पूरा आसमाँ
सिर्फ मुश्किलों से अनजान ही तो हैं
बड़े हो खुद से खुद को छिपाने लगेंगे
कोई शैतान न,ये भी इंसान ही तो हैं
कर दे तू इनकी सारी गलतियां माफ़
बच्चों के रूप में ये भगवान ही तो है।
मिज़ाज में थोड़ी सख्ती लाज़िमी है हुज़ूर,
लोग पी जाते समंदर अगर खारा न होता।
खुलते हैं मुझ पे राज कई इस जहान के,
उसकी हसीन आँखों में जब झाँकता हूँ मैं।
शायद तू कभी प्यासा फिर मेरी तरफ लौट आये,
आँखों में लिए फिरता हूँ दरिया तेरी खातिर।
अजीब सी आदत और गज़ब की फितरत है मेरी,
मोहब्बत हो कि नफरत हो बहुत शिद्दत से करता हूँ।
मेरी सादगी ही गुमनाम में रखती है मुझे,
जरा सा बिगड़ जाऊं तो मशहूर हो जाऊं।
दिल मेरा तोड़ा ऐसे वीरान भी न रहने दिया,
खुद खुदा हो गया मुझे इन्सान भी न रहने दिया।
उसके दिल में थोड़ी सी जगह माँगी थी
मुसाफिरों की तरह,
उसने तन्हाईयों का एक शहर
मेरे नाम कर दिया।
इश्क़ में मेरा इस कदर टूटना तो लाजमी था,
काँच का दिल था और मोहब्बत पत्थर से की थी।
आ देख मेरी आँखों के ये भीगे हुए मौसम,
ये किसने कह दिया कि तुम्हें भूल गये हम।
कोई दीवाना दौड़ के लिपट न जाये कहीं,
आँखों में आँखें डालकर देखा न कीजिए।
इत्तिफ़ाक़ समझो या मेरे दर्द की हकीक़त,
आँख जब भी नम हुई वजह तुम ही निकले।
जीना मुहाल कर रखा है मेरी इन आँखों ने,
खुली हो तो तलाश तेरी, बंद हो तो ख्वाब तेरे।
मेरे लफ्जों से न कर मेरे किरदार का फ़ैसला,
तेरा वजूद मिट जायेगा मेरी हकीकत ढूंढ़ते ढूंढ़ते।
एहसान ये रहा तोहमत लगाने वालों का मुझ पर,
उठती उँगलियों ने मुझे मशहूर कर दिया।
तेरी जुदाई ने फरिश्तों सा कर दिया मुझको;
मेरा इश्क अब साधुओं सा सब्र रखता है!
इश़्क की फ़ितरत मलंग से रंग घोले;
बाज़ी थी इशारो की, ज़ुबा भी क्या बोले?
मोहब्बत, मोह्ब्बत ही होगी, बदल न जाएगी;
चाहे तू मुझसे कर, या मै तुझसे करू!
तुम जिस रास्ते से चाहो आ जाना,
मेरे चारो तरफ टूटा दिल है।
फ़तवा जारी किया है, तुम्हारे खिलाफ हमने;
अब शरारत की तो, ख्वाबों से बे दखल समझो!
वो मुझे देख कर ख़ामोश रहा,
और, इक शोर मच गया मुझ में !
तुम मेरे साथ हो ये सच तो नहीं है लेकिन
मैं अगर झूट न बोलूँ तो अकेला हो जाऊँ
~अहमद कमाल परवाज़ी
दिल उजडी हुई इक सराय की तरह है;
अब लोग यहां रात बिताने नहीं आते।
~ बशीर बद्र
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