जर्रा जर्रा वो मुझमें समाता जा रहा है,
क्या उसका भी मेरे जैसा हाल होता जा रहा है।
फिर ना कहना कि हमें फुर्सत नही थी,
हम तो आये पर शायद तुम्हें जरूरत नहीं थी।
किस्तों में मौत आ रही है तेरे चुप हो जाने से,
हो सके तो बात कर किसी बहाने से।
गर मिलना है आशिक़ से तो जाओ किसी मयखाने में,
वरना लिपटे मिलते है जिस्म किसी होटल, झाड़ी या तहखाने में।
किस्मत की लकीरों का तुम ताज बन जाओ,
कल की बात छोडो,तुम मेरे आज बन जाओ।
कही पर दुआ का इक लफ्ज भी असर कर जाता हैं दोस्त,
तो कही बरसों की इबादत हार जाती हैं।
इश्क़ एक बहुत ज़हरीला जंगल है यारों
यहां सांप नहीं हमसफ़र डसा करते हैं।
गुज़रना है तो दिल के अंदर से गुजरो,
मोहब्ब्त के शहर में बाईपास नहीं होते।
धीरे से लबों पे आया है एक सवाल,
तू ज्यादा खूबसूरत है या तेरा ख़्याल।
तमाम अल्फ़ाज़ तेरे बिना बेमतलब हैं,
चंद कहानियाँ तेरे बिना अधूरी रहीं।
दिल तो था ही नहीं मेरे पास,
जो टूटा वो भरोसा था मेरा।
है कोई यहां जो करेगा रफूगरी मेरी,
इश्क खा गया है जगह-जगह से मुझे।
इश्क़ मुक्कमल होने ही वाला था,
की कमबख्त नींद ने धोखा दे दिया।
किसी के खामोश हो जाने पर होने वाली बेचैनी भी प्यार है,
और किसी का खामोश हो जाना भी प्यार है।
किताब ए इश्क़ में क्या कुछ दफ़्न मिला,
मुड़े हुए पन्नों में एक भूला हुआ वादा मिला।
अधूरा हूं तुम्हारे बिना मैं तो पूरे तुम भी नहीं,
अगर हूं मैं सच तो ख्वाब तुम भी नहीं।
कोई अधूरी ना रहे दुआ किसी की,
सबके लिए ऐसा मुबारक रमजान हो।
दूर तो कर दिया हैं,
अलग कर पाओगे क्या।
देखी जो नब्ज़ मेरी तो हंस कर बोला हकीम,
कि तेरे मर्ज का इलाज़ महफ़िल है दोस्तों की।
वो जो मरने पर तुला है,
उसने जी कर भी तो देखा होगा।
तसव्वुर तक मुझसे खफा खफा से हैं,
एक वही जरिया था तुमसे मिलने का।
Read Also:
0 Comments