उस रात कुछ यूं हुई बरसात,
हर बूंद में बहें थे मेरे जज्बात।
तहजीब की मिसाल तो गरीब के घर पर है,
दुप्पटा फटा हुआ है पर उनके सर पर है।
छीन लेता है हर पसंदी चीज़ मुझसे मेरी,
ए ! खुदा क्या तू इतना गरीब कब हुआ।
फिर ना कहना कि हमें फुर्सत नही थी,
हम तो आये.. पर शायद तुम्हें जरूरत नहीं थी।
जो मैं हूं बस वही हूं मुझे कोई शौक नहीं,
झूठा दिखावा करके खुद को बड़ा दिखाने की।
ये जो छोटे-छोटे से कुछ मिसरे हैं ना,
इनमें से एक उम्र निचोडी़ जा सकती है।
बस अगले मोड़ सुकून होगा,
चल जिन्दंगी, थोडा और चलें।
इंतजार उसका करना चाहिए जिसकी आने की उम्मीद हो,
उसका इंतजार करके क्या फायदा जो मज़बूरी न होते हुए भी तुम्हारे लिए आना ही ना चाहता हो।
मैं शायद इस काबिल तो नहीं कि कोई अपना समझे पर इतना यकीन है,
कोई अफसोस जरूर करेगा मुझे खो देने के बाद।
इश्क़ की दुनिया का एक ही उसूल हैं,
या तो बेपनाह बेहद हो या फिर हो ही ना।
अपनी आंखों से देखा है उसे किसी और के पास जाते हुए,
कमबख्त मैं जी भर के रो भी नहीं सका।
मन मारके जीने की आदत मत डालो,
काटनी नही है जीना है ज़िंदगी को।
याद रहेगा ये दौर-ए-हयात हमको उम्रभर,
क्या खूब तरसे ज़िंदगी में एक शख्स के लिए।
मौत का आलम देख कर तो ज़मीन भी दो गज जगह दे देती है,
फिर ये इंसान क्यो ज़िंदा रहने पर भी दिल में जगह नहीं देता।
ख्वाहिशों के बोझ में बशर तू क्या क्या कर रहा है,
इतना तो जीना भी नही हैं जितना तू मर रहा है।
उठा के हाथ मांगा था जिसको मैंने हर दुआ में,
वक़्त की मार क्या पड़ी उसी ने मुझ पे उंगलियां उठाई हैं।
साँसें मेरी जिन्दगी मेरी और मोहब्बत भी मेरी,
मगर हर चीज मुकम्मल करने के लिए जरूरत तेरी।
मिल जाए जो आसानी से उसकी ख्वाहिश किसे है,
जो तकदीर में ना लिखा हो पाने की ख्वाहिश तो बस उसकी है।
जर्रा जर्रा वो मुझमें समाता जा रहा है,
क्या उसका भी मेरे जैसा हाल होता जा रहा है।
फिर ना कहना कि हमें फुर्सत नही थी,
हम तो आये पर शायद तुम्हें जरूरत नहीं थी।
किस्तों में मौत आ रही है तेरे चुप हो जाने से,
हो सके तो बात कर किसी बहाने से।
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