Dhokha Shayari
मेरे अल्फाजो को समझने वाले,
लगता है तेरे ज़ख्म भी गहरे है।
जाने बाला कमियां देखता हैं,
निभाने बाला काबलियत।
हाल क्या कहूं लग गई हैं नजर तुम्हारी,
तुम्हारी थी इसलिए अब तक नही उतारी।
अजीब शर्त रख दी दिलरुबा ने मिलने की,
सूखे पत्तों पर चल कर आना और आवाज़ भी न हो।
फरमान अपनी हदों में रहने का आ गया है,
वक्त अलविदा कहने का आ गया हैं।
बहुत खास हो तुम,
ये एहसास दिलाते दिलाते में आम हो गया।
फ़कीरी ये कि तुझसे मिल नहीं सकते,
रईसी ये कि तुझसे इश्क़ करते हैं।
अगर मिलती मुझको दो दिन की बादशाही साहेब,
तो मेरी सियासत में तेरी तस्वीर के सिक्के चलते।
तलब इतनी कि तुम्हे बाहों में भर लूँ,
पर मजबूरी यह कि तुम दूर बहुत हो।
जज़्बात लिखे तो मालूम हुआ,
पढ़े लिखे लोग भी,पढ़ना नहीं जानते।
तोड़ दिए मैंने घर के आईने सभी,
प्यार में हारे हुए लोग मुझसे देखे नहीं जाते।
हमारे दिल की मत पूछो साहब बड़ी मुश्किल में रहता है,
हमारी जान का दुश्मन हमारे दिल मे रहता है।
कहने लगे वो कि तुम 'बदतमीज़ ' हो,
हमने कहा हुज़ूर 'निहायती' भी बोलिए।
बिना गलती के मिली हुई सजा,
मौत से भी बदत्तर लगती है।
सुलझा हुआ सा समझते हैं मुझको लोग,
उलझा हुआ सा मुझमें, कोई दूसरा भी है।
उसके ख्यालों से रंग गयी है रूह तक मेरी,
अब किसी और का ख्याल आये तो आये कैसे।
खुदा ही जाने क्यूँ तुम हाथो पे मेहँदी लगाती हो,
बड़ी नासमझ हो फूलों पर पत्तों के रंग चढ़ाती हो।
वो मुझसे बिछड़ना चाहती थी
मैंने कहा दुआ कर मेरी मौत की।
हम इसलिए नई दुनिया के साथ चल न सके,
कि जैसे रंग ये बदली है हम बदल न सके।
झूठी हँसी से जख्म और बढ़ता गया,
इससे बेहतर था खुलकर रो लिए होता।
हमने इबादत रखा है हमारे रिश्ते का नाम,
मोहब्बत को तो लोगों ने बदनाम कर दिया।
सुनो गुलाल मत खरीदना इस साल की होली पर,
तुम्हारे होंठ गुलाबी है गालों पर मेरे वही लगा देना।
अब किसी गैर का कब्जा है उनके दिल पर,
यानी बेघर हो गए हैं हम अपना मकान होते हुए ।
सब जान के अनजान बन रहा हू मै,
कुछ इस तरह इस दिल पर मेहरबान हो रहा हु में।
अल्फाज तो जमाने के लिये हैं तुम आना,
तुम्हें हम दिल की धडकनें सुनायेंगे।
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