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तमाम उम्र बनाता रहा जो मिट्टी के दीये,
मयस्सर न हुई रोशनी कभी उसके चारदीवारी में ll
बाद तरक़्क़ी हिजरत कर गए सारे परिंदे,
बूढ़ा शजर तन्हा बहोत है अब वीरानी में ll
वो दौर गया जब फूल रहते थे किताबों में सलामत,
अब तो हर रोज बदलते हैं किरदार कहानी में।
उसे भला क्यों हो अब बरसात से कोई दरकार,
आशियाँ जला हो जिसका बारिश के पानी में।
उफान आएगा तो बताएंगे कि यूँ रोते हैं,
अभी ज़ब्त लाज़िम है अश्कों की रवानी में।
वो सज़ायाफ़्ता यक़ीनन मुजरिम तो नही था,
सर क़लम हो गया मगर हाकिम की हुक्मरानी में।
दिल जला है मेरा लहजा आतिश-फ़िशाँ रहने दो,
अभी जरा वक़्त लगेगा मेरे शीरीं-ज़बानी में।
हाल दिल का सुनाना चाहता हूँ,
तुम्हे अपना बनाना चाहता हूँ,
कब तलक छुपाऊं अपनी मोहब्बत,
तुम्हे हाले दिल बताना चाहता हूँ,
शर्मो-हया से रुख पर जो बिखरी जुल्फें तेरी,
उनको रुख से हटाना चाहता हूँ,
मेरे किरदार के हैं यहाँ दिवाने कई पर,
मैं खुद को तेरा दीवाना बनाना चाहता हूँ,
एक मुद्द्त से रहा प्यासा तेरी चाहत का,
तुझको एक बार सीने से लगाना चाहता हूँ,
तुम मुझे ही चाहो और दुनिया भुला दो,
जादू यह इश्क का चलाना चाहता हूँ,
तुम्हे दिल में बसा कर लिखी जो ग़ज़ल,
अब उसे ही गुन-गुनाना चाहता हूँ।
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