Love Shayari

वो चल नहीं सकते थक गए हैं वो लड़खड़ाते पावँ,

मेरे मजबूत पावों का सहारा बननें में उन्हें अब भी कोई परहेज़ नहीँ है।


हर बात के बाद वो मुझे यकीं दिलाता रहता है,

उसे मालूम नहीं शायद मैं उसकी असलीयतों से वाकिफ़न जानें कब से हूँ।


तुम यकीन कर सको तो करलो मेरी बातों का,

अब तुम्हारे लिए मैं दिल चीर नहीं सकता  अपना।



सुना है मरहम लाया है वो बेचनें के लिए,

उससे कहा दो वो ख़ुद भी मरहम है किसी के लिए।


कुछ को गरीबी नें तो कुछ को बेबसी में मार दिया,

हम तो साब  पढ़े लिखे थे हमें नौकरी की तड़प नें मार दिया।


पलट रहा है वक़्त बदल रहे हालात,

'मैकू' सम्भल के चल इन नए रास्तों पर ऐसा न हो की फिर वही हो जाए बात।


वो कहता है नादानियाँ मत कर हार जाएगा,

मैनें तो कह दिया अब इतना हार चुके हैं की कुछ बचा ही नहीँ।


मैं उसकी तलाश कर रहा था लाल कपड़ों से,

वो नक़ाब ओढ़े आया मोहल्ले वालों के सितम से।


कुछ घर की जिम्मेदारियाँ हैं कुछ तेरा प्यार,

बस और कुछ नहीं जिंदगी में यही तो है मेरा पूरा संसार।


मुझे ज़लील करके बहुत अच्छा किया उसनें,

बेवज़ह किसी के लिए भी यूँ ही जिंदगी बर्बाद कर रहा था मैं।


वो कहता था बेहद इश्क़ करता है मुझसे,

एक हफ़्ता हो गया है 'मैकू' मैनें फोन नहीं किया तो उसनें भी हाल पूछा नहीं है अब तक।


इतना आसान है क्या सब कुछ भुला देना,

अगर ऐसा है तो 'मैकू' मैं उसे भूल जाना चाहता हूँ बिल्कुल।


तैरती उन लाशों से जिस दिन रूबरू हुए हम,

बस उसी दिन से  उसकी आँखों में उतरना छोड़ दिया है।


डूब जाना  इतना भी मुश्किल नहीं 'मैकू',

एक बार उतर के देखो उसकी नज़रों के भँवर में।


दामन तो आज़कल ख़ुद वो औरों से अपना बचानें लगा है,

जो कभी कहता था आजकल पढ़े लिखे समझदार लोग हैं गवार थोड़ी।


वो आया था हमसे रिश्ता तोड़नें के लिए,

उसे मोहब्ब्त हमीं से है बस अब वो किसी औऱ का है बताया उसनें।


उस रिश्ते में अब ऐसे मुक़ाम पे हम थे,

वो आँसू बहाता था तो भी हमें लगता था कोई चाल है इसमें।


ऐ ख़ुदा बस कर अब इतनी भी सज़ा न दे,

अभी तो टूटे हैं कहीं ऐसा न हो कि टूट के बिखर जाएं हम।


तकलीफ़ जहाँ से है ईलाज़ भी वहीं क्यों नहीं करानें जाते,

ये इश्क़ है साहब गली चौराहों औऱ हस्पतालों में इसके हक़ीम नहीं मिला करते।


बड़ी आसानी से भूलने भुलानें की बातें होती हैं,

ये नए ज़मानें का इश्क़ बेकार है क्या।


मेरे चेहरे के शिकन नही हौसला देखो,

क़ामयाबी से हमें इश्क़ है उसे हमसे नफ़रत ये मोहब्ब्त का फ़लसफ़ा देखो।


मुझे बार बार इधर आनें से रोका गया,

ये ग़रीबी की दीवार बड़ी मुश्किल से लाँघ पाया हूँ।


बड़ी आसानी से मेरी हर बात समझ जाता था,

मुझे लगता है वो भी आशिक़ पुराना होगा।


दाँव पेच में मोहब्ब्त भी सियासत को मात देती है,

कभी देखा है मोहब्बत का हारा जिंदा तुमनें।


गुस्सैल आँखों से ही सही अब वो देखती है मुझे,

लगता है बर्फ़ उधर की पिघलनें लगी हैथोड़ी बहोत।


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