Khamoshi Shayari - खामोशी शायरी
कभी-कभी मेरी खामोशी को भी समझ लिया करो साहेब,
हर बार अल्फाज नही मिलते दर्द बयान करने को।
किसी की तारीफो के मोहताज नही है हम भी,
खुदा का शुक्र है खुद मे ही लाजवाब है हम भी।
तुम बन जाओ सुकून वाला रविवार हमारा,
मैं 3 दिन पहले से करु इंतेज़ार तुम्हारा।
हमे मन्जूर है बन जाना तुम्हारा रविवार भी,
बस छुट्टी का दिन तुम्हारे साथ मेयसर हो।
एक दूसरे से बिछड़ कर हम कितने रंगीन हो गए,
मेरी आँख लाल हो गई ओर उनके हाथ पीले हो गए।
याद है मुझे आज भी वो मुलाकात का दिन,
तुम्हारा छत पे दुप्पटा सुखाना वो रविवार का दिन।
मुहब्बत मिल नही सकती मुझे मालूम है साहेब,
मगर खामोश बैठी हू मुहब्बत जो कर बैठी है।
एक बार तेरे हो गये तो बस हो गये,
रोज रोज करना क्या नया इस्तिखारा कैसा।
लिख चुके हैं तेरे लिए एहसास बहुत सारे,
फिर भी जितना तुझे चाहा वह कभी लिख नहीं पाये।
सुनो मुहब्बत करके देखी है मुहब्बत साफ धोखा है,
ये सब कहने की बाते है कौन किसका होता है।
एक तेरी मुहब्बत की खातिर,
जाने किस किस का एहतेराम किया।
अब तल्खियो का सामना करने का वक्त है,
अब उम्र ख्वाब देखने वाली नही रही।
यू वफा के सिलसिले मुसलसल ना रख किसी से,
लोग एक खता के बदले सारी वफाऐ भूल जाते है।
परखने लग जाते हैं अक्सर लोग शख्सियत,
कभी वक्त कभी इश्क़ तो कभी हैसियत।
अधूरी हसरतों का आज भी इलज़ाम है तुम पर,
अगर तुम चाहते तो ये मोहब्बत ख़त्म ना होती।
डूबा है मेरा बदन मेरे ही लहू में,
ये कांच के टुकड़ो पे भरोसे की सज़ा है।
किरदार तो हमारे भी बहुत रंगीन हुआ करते थे,
फिर हुआ यूं कि हम किसी से इश्क संगीन कर बैठे।
यूँ तो गलत नही होते अंदाज चेहरो के,
लेकिन लोग वैसे भी नही होते जैसे नजर आते है।
जिसने दिल दिया हे उसको नही दोस्त,
जिसका दिल टूटा ही उसको पूछो प्रेम क्या है।
तुम मेरी एक नही हज़ार तलब के बराबर हो,
क्योंकि मैंने तुम्हे नशे से नही चाय सा चाहा है।
रक़ीब ने पहनाई थी उसे हीरे की अंगूठी,
मेरी पहली कमाई से पहनाई पायल अब छनकती नही है।
तेरे साथ गुजारा लम्हा फिर नही आया,
वो रात नही आई वो दिन नही आया।
मान लेते हैं जिसे, दिल से अपना नज़दीकियों में दायरा नहीं रखते,
ना पूछ ज़हन में छिपाया क्या है इश्क़ रखते हैं, हादसा नहीं रखते।
दुनियाँ में हर चीज कीमती है,
पाने से पहले और खोने के बाद।
रख दे मेरे होठो पे अपने होंठ कुछ इस तरह,
या तेरी प्यास बुझ जाये या मेरी साँस रुक जाये।
खोजती है निग़ाहें उस चेहरे को,
याद में जिसकी सुबह हो जाती है।
कर देते है मेसेज हारकर सामने से,
मन ही नही लगता नाराजगी का क्या करेंगे।
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